मेरी भावनाएं.. मेरी अनुभूतियाँ..
कभी जिनका कोई अस्तित्व नहीं था...
पर न मैंने उनका साथ छोड़ा.. न उन्होंने मेरा.. !
एक दुसरे को.. अंधे और लंगड़े दोस्त की कहानी सुनाते .. जलते शहर में बढ़ते रहे.... !
जब दिशा मिली.. तो चलते चलते अचानक पाँव रुके हैं..
तो खुद को बाज़ार में पाता हूँ.. !!! जहाँ हर चीज़ के दाम लग रहे हैं..
और कहीं से कोई चीख कर कह रहा है..बेचोगे क्या...??? अच्छे दाम दूंगा..
मेरी भावनाओं के भाव लगाने के कलुषित भाव.. मंशा उद्देश्य सब.. साफ़ हैं उसके चेहरे पर..!!!
परिस्तियों ने बाढ़ लाया है इनमें...लेकिन "मैं' ने एक जटा फेंकी है और समेट लिया है.. !!!
मेरी भावनाएं कभी जिनका कोई वजूद न था.. पर ये तो धरोहर है.. मेरी...
जिसमे मिला है
माँ का दूध..
पिता की डांट..
नानी का दुलार...
परीक्षा से पहले हाथ में लगे दादा जी के पैरों की धुल...
बुआ की कहानिया.."का खाऊं का पियूँ.. का ले परदेस जाऊं.."
इनसे अलग तो मेरा कोई आस्तित्व ही नहीं..इन्ही से तो मैं.. बना है..
इन्हें कैसे बेच सकता हूँ ...नहीं नहीं नहीं.. नहीं... नहीं!!!!
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7 comments:
इनसे अलग तो मेरा कोई आस्तित्व ही नहीं..इन्ही से तो मैं.. बना है..
इन्हें कैसे बेच सकता हूँ ...
baht achchi abhivyakti hai.....!!
ये 'मैं' सत्य की बुनियाद है,
रिश्तों की धरोहर है,
अन्धकार में प्रकाश है,
जिस कवच से कर्ण अलग हो gaya-वह कवच है,
यानि सुरक्षा संबल.........इसे मत गंवाना,
खरीदार तो चाहते ही हैं वजूद को लेना,
मत देना-भले कई रातें आँखों में गुजरे,
इन्हें रखना.........माँ का प्यार,पाप की सीख,हर रिश्तों के स्पर्श,
ये 'मैं'-बहुत सराहनिए
bahut khubsurat likha hai.....swayam ke sanskaaron ki poonji ke samaan hi ye kaviata bhee amuly hai.....behad klisht hai.....
anoopam abhivyakti!
...Ehsaas!
kitni spashtata hai aur khoobsoorati bhi man ko mohti hai ......sahaj bhav par fir bhi sashakt...
anmol dharohar jiska koi mol nahi naahi jiska koi tod ye amar hai apni yadon main jo apne sanskaro se jhalkti hai inko kabhi khona nahi ye pyar har kisi ko nahi milta aur agar milta bhi hai to uski kadar nahi karta ....
bahut kam log hain aise jo is anmol dharohar ko apna hi astitv mante hain unme se ek mera bhai hai
बेहद खुबसूरत और गहन रचना.....
AWSM n line hai
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