मेरी भावनाएं.. मेरी अनुभूतियाँ..
कभी जिनका कोई अस्तित्व नहीं था...
पर न मैंने उनका साथ छोड़ा.. न उन्होंने मेरा.. !
एक दुसरे को.. अंधे और लंगड़े दोस्त की कहानी सुनाते .. जलते शहर में बढ़ते रहे.... !
जब दिशा मिली.. तो चलते चलते अचानक पाँव रुके हैं..
तो खुद को बाज़ार में पाता हूँ.. !!! जहाँ हर चीज़ के दाम लग रहे हैं..
और कहीं से कोई चीख कर कह रहा है..बेचोगे क्या...??? अच्छे दाम दूंगा..
मेरी भावनाओं के भाव लगाने के कलुषित भाव.. मंशा उद्देश्य सब.. साफ़ हैं उसके चेहरे पर..!!!
परिस्तियों ने बाढ़ लाया है इनमें...लेकिन "मैं' ने एक जटा फेंकी है और समेट लिया है.. !!!
मेरी भावनाएं कभी जिनका कोई वजूद न था.. पर ये तो धरोहर है.. मेरी...
जिसमे मिला है
माँ का दूध..
पिता की डांट..
नानी का दुलार...
परीक्षा से पहले हाथ में लगे दादा जी के पैरों की धुल...
बुआ की कहानिया.."का खाऊं का पियूँ.. का ले परदेस जाऊं.."
इनसे अलग तो मेरा कोई आस्तित्व ही नहीं..इन्ही से तो मैं.. बना है..
इन्हें कैसे बेच सकता हूँ ...नहीं नहीं नहीं.. नहीं... नहीं!!!!
Tuesday, July 1, 2008
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